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Mere Dost

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Thursday, February 13, 2014
तुम लिखोगी एक नयी दास्तान आज
इश्क की बनेगी नयी पहचान आज

फसल-ए-इश्क को मिलेगी नयी जान आज
नहीं सुनी जाएगी कोई फरमान आज

बारिश-ए-इश्क में तर हो जाएगी जहान आज
हर सिमत सब्ज़ हो जाएगी बयाबान आज

उरूज-ए-मौसम-ए-बहार पे है गुल्शितान आज
हर ज़र्रे पे तारी है, खुशनुमा इत्मिनान आज

इस्म-ए-इश्क से न रहेगा कोई अनजान आज
ले आयेंगे कितने काफिर इश्क पे ईमान आज

ख़ुदा का भी लगा है इसी तरफ धयान आज
रुक गयी है कारोबार-ए-दोनों  जहान आज

लिखती देख इश्क की नयी दीवान आज
दुश्मनान-ए-इश्क खड़े, बड़े हैरान आज